आज की कथा 16/01/2019



||| एक विद्वान ब्राह्मण को कबीर साहेब जी ने कैसे किया पराजित |||


  कबीर साहेब काशी शहर में जुलाहों की बस्ती में दरिद्र अवस्था में रहते थे । उसी शहर में एक महर्षि सर्वानंद रहते थे । उनकी माता श्रीमती शारदा देवी जी भी उनके साथ रहती थीं । शारदा देवी शारीरिक रूप से बहुत बीमार थी । बहुत से वैद्यो को दिखाया । बहुत प्रकार की दवाइयां भी खाई लेकिन कोई लाभ नहीं  हुआ । प्रारब्ध जानकर पापकर्मों को कम करने की दृष्टि से सर्व पूजाएं, तंत्र मंत्र, जादू टोना, धार्मिक क्रियाएं करवा के थक चुकी थी । सभी विद्वान यह कह देते कि पाप कर्म कभी नही कटते, ये सब तो भोगने ही पड़ते है । त्रेतायुग में श्री राम जी द्वारा बाली को मारने का बदला द्वापर में कृष्ण को बाली आत्मा शिकारी बनकर मारने से हुआ ।
कई लोगों ने शारदा को इस हालत से छुटकारा पाने के लिए कबीर साहेब के यहाँ जाने को कहा । लेकिन ब्राह्मण महिला एक जुलाहे के घर कैसे जाए । एक दिन शारदा देवी जाने को तैयार हुई । सिर पर पल्लू बांधे शारदा ने कबीर जी के चरणों में दंडवत प्रणाम किया, परमेश्वर ने आशीर्वाद भरा हाथ शारदा के सिर  पर रख कर कहा " शारदा! आज एक धानक के पास कैसे चली आई ? लोग तुझे क्या कहेंगे? " शारदा को महसूस हुआ मानो उसके सिर पर से भारी वजन हटा दिया हो । तुरंत अपनी लोक-लाज को त्यागकर परमेश्वर कबीर जी से नाम दीक्षा ली और यथार्थ भक्ति करने लगी ।

शारदा ने एक दिन अपने बेटे सर्वानंद से कबीर परमेश्वर का जिक्र किया। सर्वानंद जी कहने लगे वो धानक जुलाहा क्या जाने शास्त्रों के बारे में । मैंने तो सभी शास्त्रों का अध्ययन कर रखा है मुझसे बड़ा कोई ज्ञानी नहीं है ।
अनेक विद्वानों को शास्त्रार्थ में पराजित कर चुके सर्वानंद ने माँ से कहा, " माँ मेरा नाम सर्वजीत रख दो " । शारदा ने कहा, " तूने भले ही विश्व के सभी विद्वानों को परास्त कर दिया हो, सब विद्वानों का विद्वान कबीर हैं। उसे पराजित कर के आ फिर तेरा नाम मैं सर्वजीत रख दूंगी । सर्वानन्द हंस कर बोला “धानक जुलाहा तो अनपढ़ है,  वो क्या जाने शास्त्रो के बारे में , उसे तो मैं अभी परास्त कर के आता हूं" ।

अब सर्वानन्द जी बैलों पर सारे शास्त्र रखकर चले कबीर साहेब से शास्त्रार्थ करने। जुलाहों की कॉलोनी में आकर सर्वानन्द कबीर परमेश्वर जी की मुँह बोली बेटी, कमाली जो पानी भर रही थी, से कहा " ए लड़की, मुझे जल्दी पानी पिला "। कमाली ने सर्वानन्द जी को पानी पिला दिया । सर्वानन्द ने पानी पीकर पूछा " ए लड़की ! ये किस जाति का कुआ है " । कमाली कहती है कि ," ब्राह्मण ! जुलाहों की कॉलोनी में ब्राह्मणों का कुआ नही होता " सर्वानन्द छिपाना चाहते थे लेकिन सारी बस्ती उमड़ कर उसे देख रही थी । सर्वानन्द ने कमाली को डांटा और कहा, " तूने मुझे पहले क्यों नही बताया ?"
सर्वानन्द ने पूछा “कबीर का घर कहाँ है " कमाली पहले तो हंसी फिर कहने लगी ,
कबीर का घर शिखर में, जहाँ सलैली गैल ।
पांव न टिकै  पपील के , पंडित लादै बैल ।।
अर्थात कबीर जी का घर तो सतलोक में है, जहाँ जाने का मार्ग सीधा है, उस मार्ग पर चींटी के पांव भी नही टिक सकते और तू इतना बोझ उठाए , कबीर जी के घर जाने की बाट देख रहा है ।
कमाली सर्वानन्द को घर ले आई और कबीर परमेश्वर जी से बताया। कबीर साहेब जी ने कहा " उस ब्राह्मण को आदर सहित अंदर ले आओ "। कमाली गयी और सर्वानंद जी से कहा, "आइए हमारी कुटिया में पधारिये, कबीर साहेब आपका इंतजार कर रहे है"। सर्वानंद ने कमाली को पानी से भरा लोटा कबीर साहेब को देने को कहा और उससे कहा कि वो इसका उत्तर जो भी दे, वो मुझे बताना । कबीर साहेब ने एक मोटी सुई उस पानी से भरे लोटे में डाल दी । सुई नीचे चली गयी और पानी बाहर ढुल गया । कमाली उस लोटे को पुनः लेकर सर्वानंद के पास आई । कमाली ने बताया " कबीर साहिब ने कोई उत्तर नहीं दिया । बस इसमें एक सुई डाल दी । आप स्वयं कबीर साहब से चर्चा कर लीजिए "।
सर्वानंद अंदर आए और कबीर साहेब से पूछा " आपने मेरे प्रश्न का क्या उत्तर दिया?" कबीर साहेब ने पूछा  " आपका प्रश्न क्या था?" सर्वानंद कहते हैं " जिस प्रकार यह लौटा पानी से पूर्ण रूप से भरा हुआ था और यदि इसमें एक बूंद पानी डाला जाता, तो बाहर ही गिरता । इसी प्रकार मैं ज्ञान से इतना परिपक्व हूं कि दूसरा ज्ञान अब मेरे अंदर समाएगा नहीं । इसलिए आप पहले ही हार मान लीजिए"। तब कबीर साहब कहने लगे ," सुनो सर्वानंद मेरा उत्तर ! मैंने सुई इसलिए डाली थी कि  मेरा ज्ञान इतना कठोर है कि आप के थोथे ज्ञान को बाहर उठाकर फेंक देगा । जिस प्रकार सुई ने इस पानी में जगह बना ली, इसी प्रकार मेरा ज्ञान आपके ह्रदय में जगह बना लेगा" । तब सर्वानन्द जी कहते है , " अच्छा कबीर जी, आप करो प्रश्न !" कबीर साहेब जी ने प्रश्न किया:-

कौन ब्रह्मा का पिता है , कौन विष्णु की माँ ।
शंकर का दादा कौन है , सर्वानन्द जी दो बता ।।

अर्थात कबीर साहेब जी सर्वानंद जी से कहते हैं कि " ब्रह्मा विष्णु महेश के माता पिता कौन है ??" कृपया करके बताइए ! सर्वानंद जी कहते हैं, " इनकी कोई माता-पिता नहीं है, यह तो अजर अमर है, अविनाशी है, सर्वेश्वर है, महेश्वर है , मृत्युंजय कालंजय है , इनके कोई माता-पिता नहीं है" ।
कबीर साहिब ने कहा ," सर्वानंद जी निष्पक्ष भाव से श्रीमद् देवी भागवत महापुराण तीसरा स्कंद पढ़ कर देखिए । इसमें स्वयं विष्णु जी और शिव जी अपनी माता दुर्गा की स्तुति करते हुए कह रहे हैं, "तुम ही जगत जननी हो , तुम ही शुद्ध स्वरूपा हो , यह सारा संसार तुम ही से उद्भाषित है और हम तीनों ब्रह्मा विष्णु महेश भी तुम्हीं से उत्पन्न हुए हैं" और पवित्र शिव पुराण रूद्र संहिता पृष्ठ 99 से 108 तक में स्पष्ट प्रमाण मिलता है, कि ब्रह्मा विष्णु महेश की उत्पत्ति दुर्गा और ज्योति निरंजन ब्रह्म के संयोग से हुई है" ।
सच्चाई जानकर अपनी इज्जत बचाने के लिए सर्वानंद संस्कृत में बोलने लगे। आसपास बैठे सभी जुलाहों ने तालियां बजा दी । कबीर साहेब कहने लगे ," वाह सर्वानंद जी ! आप जीत गए, मैं हार गया । यही चाहते थे ना आप । सर्वानंद जी कहने लगे, " हां,  मैं यही चाहता था" ।
सर्वानन्द कहता है, " आप लिख कर दो तभी मेरी माता जी मानेगी" ।  कबीर साहेब ने कहा, " मैं तो अनपढ़ हूं आप ही लिख लीजिए" ।  तब सर्वानंद जी ने लिखा  " शास्त्रार्थ में कबीर साहेब हार गए और सर्वानंद जीत गए " । कबीर साहेब का अंगूठा लगवा लिया और घर की ओर चल पड़ा ।
घर पर आकर मां से कहता है  , " मां ! मेरे जाते ही कबीर साहिब ने हार मान ली । अब मेरा नाम सर्वाजीत  रख लो " । सर्वानंद की मां ने कहा " बेटा ! लिखवा कर लाया " । सर्वानंद जी कहते हैं ," हां ! सर्वानंद जी की मां शारदा देवी कहती है कि ," पढ़कर सुना "। सर्वानंद जी पढ़ रहे हैं , "शास्त्रार्थ में कबीर साहेब जीत गए और सर्वानंद हार गया !" मां कहती है,  बेटा ! तू तो हार के आ रहा है और अपने आप को जीता हुआ बताता है । सर्वानंद कहता है,  लगातार शास्त्रार्थ करने में मुझे नींद के झटके आ रहे होंगे । इसलिए मैंने गलती से लिख दिया,  फिर जाता हूं, फिर लिखवा कर लाता हूं, फिर कबीर साहब के पास गया ।
सर्वानंद इसी प्रकार कबीर साहब से बार बार वही लिखवाता लेकिन हर बार लिखा उल्टा ही जाता । अब सर्वानंद समझ गया कि वह कोई आम इंसान नहीं है और अपना सिर पकड़ कर बैठ गया । मां ने कहा कि ," व्यर्थ में पंडित मत बन । कबीर साहेब विद्वानों की विद्वान है । उनसे जाकर नाम दीक्षा ले  और अपना कल्याण करा "।
फिर सर्वानंद जी कहते हैं कि ," मां ! मुझे अब शर्म लगती है, क्योंकि उन्होंने सब कुछ सही सही बताया , मैंने मान बड़ाई और लोक लाज के कारण नही माना । मुझे अब शर्म लगती है , तू चल " । फिर सर्वानंद जी , मां के साथ गए और परमेश्वर कबीर साहिब जी से नाम दीक्षा ली और अपना कल्याण करवाया ।
कबीर साहेब जी कहते है ,
सोए मात सराइये , जो पुत्र दे उपदेश ।
सकल नार व्यभिचारिणी , यू कहता हूं शेष ।।
अर्थात वही माता सराहनीय है, जो बच्चे को पूर्ण परमात्मा के मार्ग से जोड़ दें और बाकी सब तो व्यभिचारिणी हैं यह मैं सच्चाई बता रहा हूं ।

इसीलिए विश्व के सभी भाई बहनों से निवेदन है कि पूर्ण परमात्मा इस धरती पर संत रामपाल जी के नाम से आए हुए है । उनसे जल्दी से जल्दी नाम दीक्षा लीजिये और अपने परिवार को भी नामदीक्षा दिलाइये और सतलोक चलिए जहाँ पूर्ण शांति है ।

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Comments

Ajeet saini said…
Very nice

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