पूर्ण परमात्मा कबीर_साहेब जी का नाम द्वापर_युग में क्या था ?

कलयुग में धर्मदास जी कबीर साहेब के प्रिय शिष्यों में से थे। एक बार धर्मदास जी ने कबीर साहेब से उनके द्वापर युग में प्रकट होने की कथा सुनाने के लिए हृदय से निवेदन किया। कबीर परमेश्वर ने धर्मदास जी को बताया कि द्वापर युग में मैं रामनगर नामक नगरी में एक सरोवर में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुआ था। एक निसंतान वाल्मीकि दंपत्ति कालू और गोदावरी मुझे अपने घर ले गए।  एक ऋषि ने मेरा नामकरण किया। दोनों ही भगवान विष्णु के भक्त थे अतः उन्होंने मेरी प्राप्ति का कारण भगवान विष्णु ही समझा। श्री विष्णु की कृपा से प्राप्त होने के आधार पर मेरा नाम करुणामय रखवाया। 

मैंने पच्चीस दिन तक कुछ नहीं खाया-पिया। परिणाम स्वरूप मेरे पालक माता-पिता अत्यंत दुखी हुए और उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की बच्चे को मरने से बचाने के लिए। मैंने विष्णुजी को प्रेरित किया। भगवान विष्णु ऋषि रूप में प्रकट हुए। मेरे पालक माता पिता ने ऋषि को मेरी प्राप्ति का वृतांत बताया। मेरे कुछ ना खाने पीने के बारे में बताया और अपनी गहरी चिंता व्यक्त की।  मुझ बालक को पालनें में देखकर ऋषि समझ गए कि मैं कोई साधारण बालक नहीं हूं। मेरी बात समझते हुए उन्होंने मेरे पालक माता पिता को बताया कि यह बालक बिल्कुल स्वस्थ है। आप इसके लिए एक कुंवारी बछिया की व्यवस्था करें। यह सुनते ही पालक पिता कालू एक कुंवारी बछिया को ले आए। मेरे इशारे से भगवान विष्णु ने उस कुंवारी बछिया के कमर पर हाथ रख दिया। बछिया के स्तनों से दूध की धारा बहने लगी और पात्र भरने के बाद रुक गई। मैंने दूध पिया।

मेरी तथा विष्णु जी के बीच हुई वार्ता को मेरे पालक माता पिता नहीं समझ सके। वह मुझ पच्चीस दिन के बालक  को बोलते देखकर उस ऋषि रूप विष्णु का ही चमत्कार मान रहे थे। कुंवारी बछिया द्वारा दूध देना भी उस ऋषि की कृपा जानकर ऋषि के चरणों में लेट गए। मेरी पालक माता ने मुझे पालने से उठाया और विष्णु जी के चरणों में डालने लगी। लेकिन मैं उनके हाथों से निकल कर हवा में ही स्थिर हो गया। विष्णु जी पीछे हट गए और बोले, माता यह बालक परम शक्ति युक्त है और बड़ा होकर लोक कल्याण करेगा। इतना कहकर ऋषि रूप विष्णु अपने लोक चल दिए और मैं पालने में झूलता रहा। मेरे पालक माता पिता सारे घटनाक्रम को विष्णु जी की कृपा का फल समझते रहे। मैं भी चाहता था कि इन लोगों को मेरी सच्चाई का भान ना हो पाए।

मैं बचपन से ही तत्वज्ञान की वाणी का उच्चारण करने लगा था । जिस नगर में मैं प्रकट हुआ था वहाँ अकाल पड़ गया था । अतः हम लोग काशी आ गए और यहीं बस गए । काशी नगर में वाल्मीकि जाति में सुदर्शन नाम का पुण्यात्मा मेरी वाणी को सुनकर अत्यंत प्रभावित हुआ । वह मेरी ही उम्र का था और मैं जहां भी ज्ञान चर्चा के लिए जाता, वह भी मेरे साथ हमेशा रहता । मैंने उसे सृष्टि रचना सुनाई । उसने मुझसे कहा आपके ज्ञान पर कैसे विश्वास हो, मेरा भ्रम दूर करने की कृपा करें । ज्ञान चर्चा को सुनते-सुनते उसके मन में सत्यलोक दर्शन की इच्छा प्रकट हुई । अतः मैं उस आत्मा को सत्यलोक दर्शन के लिए ले गया । तीन दिन तक उसे सभी लोकों में घुमाया । पंच तत्वों से बना उसका शरीर इसी लोक में अचेत हो गया ।

सुदर्शन अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र था । इस अवस्था में अपने पुत्र को देखकर वे अत्यंत दुखी हुए । मेरे पालक माता-पिता से उन्होंने कहा कि निश्चय ही करुणामय ने हमारे पुत्र के ऊपर कुछ जादू टोना कर दिया है । जिस कारण हमारा पुत्र इस अवस्था को प्राप्त हो गया है । मैंने उन्हें समझाया कि भाई आपके पुत्र को कुछ नहीं होगा । परंतु वे नहीं माने और कहा कि यदि हमारे पुत्र को कुछ हुआ तो हम इसकी शिकायत यहां के राजा को करेंगे । वे मेरे पालक माता पिता से झगड़ा करने लगे । मेरे पालक माता-पिता सहित वे मुझे अपने घर ले गए और कहा कि कैसे भी हो हमारे पुत्र को ठीक करो । मैंने सुदर्शन के सिर को हिलाया और कहा, हे सुदर्शन! वापस आ जा, तेरे माता पिता बहुत दुखी हैं । मेरे इतना कहते ही उसकी आत्मा शरीर में वापस आ गई ।  पुत्र को जीवित देख उसके  माता पिता अत्यंत प्रसन्न हुए । भगवान विष्णु को धन्यवाद दिया और प्रसाद वितरण किया ।

लेकिन सुदर्शन करुणामय-करुणामय की पुकार करने लगा । उपस्थित लोगों को लगा कि इसके मस्तिष्क में कोई खराबी आ गई है । लेकिन वह लगातार करुणामय को पुकारता रहा तो आसपास बैठे लोगों ने पूछा क्या तुम इस करुणामय की बात रहे हो । मुझे देख, रोते हुए उसने मेरे चरणों में सिर रख दिया और बोला आप पूर्ण परमात्मा है ।  ऊपर के लोक में ये सफेद  गुंबद में पूर्ण परमात्मा के रूप में विराजमान है । यहां पर ये इस रूप में लीला कर रहे हैं । मैं सत्यलोक के दर्शन करके आया हूं और यह जान गया हूं कि यह करुणामय ही पूर्ण परमात्मा हैं । आप सभी लोग इनकी शरण में आ जाओ और अपना कल्याण करवा लो । सुदर्शन ने अपने माता पिता को भी नाम लेने के लिए प्रेरित किया । लेकिन वे कहने लगे कि भगवान विष्णु से बड़ा कोई नहीं है । अतः कोई भी इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं हुआ कि कालू का पुत्र करुणामय पूर्ण परमात्मा है, सभी उसकी हंसी करने लगे । सुदर्शन ने मुझसे नाम उपदेश लिया और मेरे बताए तरीके से भक्ति की ।

सुदर्शन ने कहा हे परमात्मा! आप मुझे सदैव अपनी शरण में रखना । मेरे माता पिता ने आपसे नाम नहीं लिया, इसमें इनका कोई दोष नहीं है । तीनों देवताओं की भक्ति से प्रभावित यह समाज कुछ भी सुनने और देखने के लिए तैयार नहीं है । इस काल ब्रह्म ने सारे विश्व को अपने जाल में उलझाया हुआ है । भक्त सुदर्शन काल के जाल को समझ पाया, मेरी भक्ति की और इस सत्य का साक्षी बना कि  पूर्ण परमात्मा कोई और है । जो ब्रह्मा विष्णु तथा शिव से सर्वथा भिन्न है । हे धर्मदास! पांडवों द्वारा किए गए अश्वमेघ यज्ञ को जिस सुदर्शन वाल्मीकि द्वारा पूर्ण कराया गया वह यही सुदर्शन मेरा शिष्य था । हे धर्मदास ! द्वापर युग में मैं 404 वर्ष तक करुणामय शरीर में लीला करता रहा और सशरीर सतलोक गमन कर गया ।

पाठकों को जानना चाहिए कि सतयुग में सतसुकृत,  त्रेता में मुनीन्द्र,  द्वापर युग में करुणामय, कलयुग में कबीर सभी पूर्ण परमात्मा के अलग अलग नाम हैं । सभी युगों में पूर्ण परमात्मा लीला करके पुण्यात्माओं को पार उतारकर और सतज्ञान देकर वापिस जाते हैं । इन्ही के स्वरूप बंदी छोड़ गरीब दास जी महाराज और वर्तमान में जगत गुरु रामपाल जी महाराज हैं । इनकी शरण में आकर सतनाम दीक्षा  लेकर अपना पूर्ण मोक्ष कराएं ।   

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