यथार्थ भक्ति बोध Part4
यथार्थ भक्ति बोध Part4
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यदि नटनी का ध्यान जरा-सा भी बाँस से हट जाए तो धड़ाम से पृथ्वी पर बाँस सहित गिरे। अपने कौतुक में सफलता प्राप्त नहीं कर पाएगी। खेल देखने वाले लोग तालियाँ बजा रहे होते हैं, फिर भी नटनी इनके शोर को नहीं सुनती। उसका ध्यान केवल बाँस पर ही रहता है। इसी प्रकार परमात्मा के गुणों का चिन्तन ध्यान यज्ञ कहलाता है। यह वास्तविक ‘‘ध्यान यज्ञ’’ है।
परमात्मा के गुण:-
कबीर पौ फाटी पगड़ा भया, जागी जीया जून।सब काहु कूं देत हैं, प्रभु चौंच समाना चून।।
मर्द गर्द में मिल गए, रावण से रणधीर।
कंश केशो चाणूर से, हिरणाकुश बलबीर।।
तेरी क्या बुनियाद है, जीव जन्म धर लेत।
गरीब दास हरि नाम बिना, खाली रह जा खेत।।
कबीर, साहिब से सब होत है, बन्दे से कुछ नाहीं।
राई से पर्वत करें, पर्वत से फिर राई।।
कबीर हरि के नाम बिना, नारि कुतिया होय।
गली-गली भौंकत फिरे, टूक ना डाले कोय।।
परमात्मा सर्व सुख दाता है। सर्व संकट मोचनहार है। निर्धन को धन, बांझ को पुत्र, कोढ़ी को सुन्दर काया, अन्धे को आँख, बहरे को कान, गूंगे को जुबान परमात्मा प्रदान कर देता है।
गरीब भक्ति बिन क्या होत है, भ्रम रहा संसार।
रति कंचन पाया नहीं, रावण चलती बार।।
उपरोक्त परमात्मा के गुणों पर विचार करते रहना ‘‘ध्यान यज्ञ’’ कहलाता है। जो पूर्व में अन्य द्वारा बताया तथा किया जाने वाला हठ योग ध्यान नहीं है, ध्यान की परिभाषा ही नहीं है। किसी वस्तु पर मन को केन्द्रित करना ध्यान कहलाता है। यह ध्यान की परिभाषा है। जो कहते हैं कि संकल्प-विकल्प सब समाप्त हो जाए और सोचना भी समाप्त हो जाए, विचार शून्य हो जाना ध्यान की अन्तिम स्थिति है।
🌿विचारणीय विषय है:- जब चिन्तन ही समाप्त हो गया तो फिर ‘ध्यान’ कहाँ रहा जिस समय विचार शुन्य हो जाएगा तो मन को किस पर केन्द्रित किया। विचार शुन्य हो ही नहीं सकता। मन को केवल प्रभु के गुणों के चिन्तन में केन्द्रित करने को ध्यान कहा जाता है।
वर्तमान में शिक्षित वर्ग ने एक मैडिटेसन (Meditation) शब्द पकड़ रखा है। कहते हैं कि कुछ समय योगा करता हूँ, मैडिटेसन करता हूँ, विचार रोककर मन को शान्त करता हूँ, मन को शक्ति मिलती है। यह केवल अपने मन को संतोष देने के लिए है। मन को रोका नहीं जा सकता। मन को अन्य विचारों से हटाकर कुछ देर अच्छे विचारों पर लगाया जा सकता है। मन के चिन्तन की गति को धीमा किया जाता है। उसी से मन को कुछ आराम मिल जाता है। लेकिन जो केवल योगा (योग-आसन) करते हैं, उनका समय व्यर्थ जाता है और जो परमात्मा के गुणों का चिन्तन करते हैं, उनको ध्यान यज्ञ का फल भी मिलता है और योग भी हो जाता है। यह कहना कि योगा में मैडिटेसन (ध्यान) करके मन को रोकता हूँ। यह भ्रम है। वह ध्यान भी व्यर्थ है। इसलिए गुरु से दीक्षा लेकर फिर परमात्मा के गुणों का चिन्तन करना ही ध्यान (Meditation) है। इसी में मानव जीवन की सफलता है।3- ‘‘हवन यज्ञ’’
> गाय या भैंस के घी को अग्नि में स्वाह करना ‘‘हवन यज्ञ’’ कहलाता है। पूर्व के ऋषि तथा वर्तमान में आचार्य तथा ऋषि व सन्त साधक हवन करने के लिए लकड़ी का प्रयोग करते हैं। यह शास्त्रोक्त विधि नहीं है। शास्त्राविधि अनुसार हवन करने के लिए रुई की बाती बनाकर मिट्टी या धातु के बर्तन (कटोरे) में रखकर भैंस या गाय का घी जलाकर मंगलाचरण पढ़कर अग्नि प्रज्वलित की जाती है। यह ‘हवन यज्ञ’ है। इसके साथ वेद मन्त्र या अमृतवाणी का उच्चारण भी किया जा सकता है। वैसे बिना वाणी या मन्त्रोच्चारण के भी शास्त्राविधि अनुसार रुई ज्योति में घी डालकर जलाने से ‘हवन यज्ञ’ हो जाता है क्योंकि घी के जलने से लाभ होता है।
> लकड़ी जलाकर यदि हवन किया जाता है तो कार्बन डाई ऑक्साईड अधिक निकलती है। एक क्विन्टल घी को हवन करने के लिए 10 किलो ग्राम लकड़ी जलती है। रुई 100 ग्राम एक क्विन्टल घी को हवन कर देती है। इसमें कार्बन डाई ऑक्साईड नाम मात्र ही बनती है। ज्योति यज्ञ करने का प्रमाण ऋग्वेद मण्डल 8 सूक्त 46 मन्त्र 10 में है।
रुई की बाती बनाकर कटोरे में खड़ा कर दिया जाता है। फिर घी डालकर मंगलाचरण पढ़ते-पढ़ते ज्योति प्रज्वलित की जाती है। यह दो प्रकार की होती है। देवी-देवताओं के उपासक टेढ़ी ज्योति जलाते हैं। गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 में अन्य देवताओं की पूजा करना व्यर्थ कहा है। यह टेढ़ी ज्योति यज्ञ की परम्परा प्राचीन है। प्रत्येक हिन्दु के घर में दोनों समय (सुबह और शाम) ज्योति यज्ञ किया जाता, यह हवन यज्ञ प्रत्येक के घर में होता था। वर्तमान में बीसवीं सदी में कुछ पंथों का उत्थान हुआ है।
1- राधास्वामी पंथ आगरा (U.P) से चला है जिसके प्रवर्तक थे श्री शिवदयाल सिंह सेठ जी निवासी पन्नी गली आगरा शहर। (उत्तर प्रदेश भारत) इसी पंथ की एक शाखा ब्यास नदी के किनारे पंजाब प्रान्त में चली है जिसके संस्थापक थे जयमल सिंह रिटायर्ड फौजी। राधास्वामी डेरा बाबा जयमल सिंह ब्यास से एक शाखा सिरसा शहर (हरियाणा) में बेगु रोड़ पर चली। जिसके संस्थापक थे श्री खेमामल जी उर्फ श्री शाह मस्ताना जी महाराज जिन्होंने पंथ का नाम बदलकर ‘‘सच्चा सौदा’’ रख दिया तथा ‘‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’’ का नारा प्रचलित किया। इसकी स्थापना सन् 1948 में श्री शाहमस्ताना जी के कर कमलों द्वारा की गई थी। इसी की अन्य शाखाएं गंगवा (जिला-हिसार) तथा जगमाल वाली (जिला- सिरसा) हरियाणा प्रान्त में चल रही हैं। राधास्वामी पंथ की अन्य शाखाएं जय गुरुदेव पंथ मथुरा में श्री तुलसी दास जी द्वारा चलाया गया।
क्रमश:.....
🌴अधिक जानकारी के लिए जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा लिखित पुस्तकें जरूर पढ़ें:- ज्ञान गंगा, जीने की राह ,गीता तेरा ज्ञान अमृत, गरिमा गीता की, अंध श्रद्धा भक्ति खतरा-ए-जान ।
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