Who is God ? प्रणाम यज्ञ

Who is God ? प्रणाम यज्ञ







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#यथार्थ_भक्ति_बोध_Part6

 4- ‘‘प्रणाम यज्ञ’’
भक्ति व साधना उसी साधक की सफल होती है जिसमें नम्रता (आधीनी) होती है, दास भाव होता है।

गरीब, आधीनी के पास है पूर्ण ब्रह्म दयाल।
मान बड़ाई मारिए बे अदबी सिरकाल।।

दासा तन में दर्श है सब का होजा दास।
हनुमान का हेत ले रामचन्द्र के पास।।

विभीषण का भाग बड़ेरा, दास भाव आया तिस नेड़ा।।
दास भाव आया बिसवे बीसा, जाकूं लंक देई बकशीशा।।

दास भाव बिन रावण रोया, लंक गंवाई कुल बिगोया।।
भक्ति करी किया अभिमाना, रावण समूल गया जग जाना।।

ऐसा दास भाव है भाई। लंक बखसते बार ना लाई।।
तातें दास भाव कर भक्ति कीजै, सबही लाभ प्राप्त कीजै।।

गरीब बेअदबी भावै नहीं साहब के तांही,
अजाजील की बन्दगी पल मांहे बहाई।।

 उपरोक्त अमृतवाणी सूक्ष्मवेद की है। इनका भावार्थ है कि भक्त में विनम्रता होनी चाहिए। जिस कारण से भक्त की भक्ति सफल होती है। यदि भक्त साधना भी करता है और अहंकार भी रखता है तो उसकी साधना व्यर्थ हो जाती है। उदाहरण दिए हैं कि:-
 🌿 हनुमान जी भगवान भक्त थे। श्री रामचन्द्र जी के साथ अति आधीन होकर रहते थे। जिस कारण से श्री रामचन्द्र जी अपने प्रिय विनम्र भक्त से विशेष प्यार करते थे। रावण लंका देश का राजा था। उसने श्री शिव जी (तमगुण) की भक्ति भी की और अहंकार भी अत्यधिक रखा। जिस कारण से श्रीलंका का राज्य भी गँवाया तथा कुल का नाश भी कराया। इसके विपरीत रावण का भाई विभिषण था जो विनम्र था तथा मुनीन्द्र ऋषि से दीक्षित भी था। जिस कारण से श्री रामचन्द्र जी ने लंका का राज्य विभिषण नम्र भक्त को बखशीश कर दिया, मुफ्त में दे दिया। इसलिए परमात्मा से सर्व लाभ लेने के लिए दासभाव अर्थात नम्रतापूर्वक भक्ति करनी चाहिए।

 🌿एक अजाजील नाम का साधक था। वह केवल प्रणाम यज्ञ किया करता था। उसने अपने जीवन में ग्यारह अरब बन्दगी (प्रणाम) किये। जब भगवान के लोक में गया, तब भगवान विष्णु ने उसकी परिक्षा ली तो उसका अभिमान समाप्त नहीं था। उसने भगवान की आज्ञा का पालन अहंकारवश नहीं किया। जिस कारण से उसकी सर्व प्रणाम यज्ञ का फल नष्ट हो गया तथा पुनः पृथ्वी पर जन्म लेकर पशु-पक्षियों की योनियों में भटकने लगा। आधीनी भक्त का गहना होता है। आधीन बनने के लिए ‘प्रणाम यज्ञ’ करना अति अनिवार्य है। सूक्ष्मवेद में तथा गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा है कि पूर्ण मोक्ष मार्ग तत्व ज्ञान (सूक्ष्मवेद) में सम्पूर्ण लिखा है। सूक्ष्मवेद स्वयं सच्चिदानन्द घन ब्रह्म (परम अक्षर ब्रह्म) अपने मुख कमल से बोलता है। वह तत्वज्ञान तत्वदर्शी सन्तों को ज्ञात होता है। इसलिए उस तत्वज्ञान की प्राप्ति के लिए तत्वदर्शी सन्तों को दण्डवत प्रणाम करके नम्रतापूर्वक प्रश्न करने से तत्वदर्शी सन्त तत्वज्ञान का उपदेश करेंगे। गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 18 श्लोक 65 में कहा है कि अर्जुन! मुझ में मतवाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो, मुझको प्रणाम कर, ऐसा करने से तू मुझे ही प्राप्त होगा। इस प्रकरण से स्पष्ट है कि पूर्ण परमात्मा की भक्ति करने के लिए दण्डवत् प्रणाम करना होता है तथा ब्रह्म तक की भक्ति करने वाले केवल करबद्ध होकर नमस्कार (प्रणाम) करते हैं।
 हमने पूर्ण ब्रह्म की भक्ति करनी है। इसलिए हम दण्डवत् प्रणाम करते हैं। यह प्रणाम यज्ञ है। तत्वज्ञान (सूक्ष्मवेद) में कहा गया है इस दण्डवत् प्रणाम से अहंकार नष्ट होता है। पृथ्वी पर पेट के बल लेटकर दोनों हाथों को सामने सिर के ऊपर को फैलाकर पैर आपस में मिलाकर पैर के पंजे पर थोड़ा सा पंजा चढ़ाकर पैर तथा हाथ जोड़कर प्रभु को दण्डवत् प्रणाम करके प्रणाम यज्ञ का अनुष्ठान करते हैं जो अहंकार को समाप्त करता है और प्रणाम यज्ञ का लाभ मिलता है।
 सूक्ष्मवेद में कहा है:-

कबीर, गुरु को कीजिए दण्डवतम्, कोटि कोटि प्रणाम।
कीट न जाने भृंग कूं, करले आप समान।।

कबीर गुरु गोविन्द कर जानिए, रहिए शब्द समाय।
मिले तो दण्डत बन्दगी, नहीं पल-पल ध्यान लगाय।।

कबीर, दण्डवत गोविन्द गुरु, बन्दू अविजन सोय।
पहले भये प्रणाम तिन, नमो जो आगे होय।।

गरीब सतगुरु साहेब सन्त सब, दण्डवत्म प्रणाम।
आगे पीछे मध्य भए, तिनकूं जा कुर्बान।।

 इस प्रकार सूक्ष्मवेद में (ऊपर लिखी अमृतवाणी में) दण्डवत् प्रणाम करने का विधान है। प्रणाम (दण्डवत् प्रणाम) करते समय मन का अहंकार बाधक बनता है। यह सोचता है कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा हैं कि मैं जमीन पर लेटकर दण्डवत् प्रणाम कर रहा हूँ। कहीं मेरी बेईज्जती (Insult) तो नहीं हो जाएगी। उस समय याद करें कि यदि परमात्मा की भक्ति नहीं की तो पाप कर्म के कारण अधरंग हो गया तो मुँह आधा खुला रहेगा, टेढ़ा हो जाएगा, मक्खियाँ निकलेंगी और अंदर जाएंगी। पैर-हाथ लटक जाएंगे, तब यह अकड़ व शर्म कहाँ जाएगी यह शरीर पाँच तत्व का पुतला है। मृत्यु उपरान्त इसको फूँक दिया जाएगा। इसकी राख पर गधे लेटेंगे। फिर गधा-कुत्ता बनकर सदा पेट के बल ही रहेगा। इसलिए दण्डवत् प्रणाम करते समय ध्यान रखें फिर क्या बनेगी, कहाँ जाएगी यह शर्म? सूक्ष्मवेद में कहा है कि:-

लोक लाज न कीजिए, निर्भय हो रहिए।
जे मन चाहे राम को, दासा तन करिए।।

क्रमश:..............

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