Happy Dussehra 2020 Quotes, images, wishes and Greetings, Messages

 




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लंकापति रावण का वध किसने किया?

लंकापति रावण दशानन के नाम से भी जाना जाता है। वह तमोगुणी शिव जी का परम भक्त था। रावण को चारों वेदों का ज्ञान था। वह एक कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुकला का मर्मज्ञ होने के साथ ज्ञानी तथा बहु-विद्याओं का जानकार था। वह मायावी के नाम से भी कुख्यात था क्योंंकि वह इंद्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और कई तरह के जादू जंतर करने में माहिर था।

उसने सारी लंका सोने की बना रखी थी जिसमें इटें, पत्थर, यहां तक गारा भी सोने का था। परंतु शिव की इतनी भक्ति करने के बावजूद उसमें कामवासना तथा अभिमान चरम सीमा पर थे जिसके परिणामस्वरूप उसका वंश ही समाप्त हो गया।

जबकि कबीर परमेश्वर की भक्ति करने वाले साधक नम्रता और अधीनी से भक्ति करते हैं।

परमात्मा बताते हैं :-

आधीनि के पास है, पूर्ण ब्रह्म दयाल |
मान बड़ाई मारियो,बेअदबी सिर काल ||

सर्वविदित है रावण कैसी मौत मारा गया। वह तमस, अंहकार और असुर स्वभाव का व्यक्ति था। कबीर साहेब ने मुनिन्दर ऋषि रूप में आकर रावण को समझाया था कि यह सीता लक्ष्मी का अवतार है । जिस शिव की तू भक्ति करता है यह उसकी भाभी है तेरी मां समान हुई। परंतु मूर्ख न माना और सत्तर बार अपनी तलवार से ऋषि मुनिंदर रूप में आए परमात्मा पर‌ वार किया परंतु परमात्मा का बाल भी बांका न कर सका।

“एक लाख पुत्र सवा लाख नाती
आज उस रावण के दीवा न बाती”।।

रावण के राज्य में चंद्रविजय भाट के परिवार के सोलह सदस्यों, रावण की पत्नी मंदोदरी और विभीषण ने (परम संत कबीर जी) मुनिंदर ऋषि रूप में आए परमात्मा से नाम दीक्षा ली थी थे और रावण के एक लाख पुत्र ,सवा लाख रिश्तेदार जिनका रावण बहुत अंहकार करता था राम के साथ युद्ध करते हुए मारे गए थे।




जब राम थक चुके थे

दशरथ पुत्र राम तो एक निमित मात्र थे, वह तो रावण के साथ युद्ध में हार मान चुके थे। रामचरितमानस में इसका उल्लेख है कि श्रीराम जितनी बार भी अपने बाण से रावण का सिर काट देते थे उस जगह पुन: ही दूसरा सिर उभर आता था।

रावण का वध श्री रामजी ने नहीं बल्कि पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी ने किया था। उसी प्रकार सीता जी भी रावण की कैद में होते हुए कैसे बची रहीं, इसके पीछे भी कबीर साहेब जी की ही शक्ति थी। इसका वर्णन भी कबीर साहेब ने अपनी वाणी में स्पष्ट कर दिया जो इस प्रकार है:-

बोले जिंद अबंद सकल घट साहिब सोई।
निर्वाणी निजरूप सकल से न्यारा होई।
हम ही राम रहीम करीम पूर्ण करतारा।
हम ही बांधे सेतु चढ़े संग पदम अठारह।
हम ही रावण मारया लंक पर करी चढ़ाई।
हम ही दस सिर फोड़ देवताओं की बंद छुटाई।
हमारी शक्ति से सीता सती जति लक्ष्मण हनुमाना।
हम ही कल्प उठाए हम ही छ: माना।

उपरोक्त्त वाणी से स्पष्ट है कि पूर्ण परमात्मा जिसने रावण का वध किया, जिनकी शक्ति से सीता जी सती रहीं और रावण इतना बलशाली होने के बावजूद उनको छू तक नहीं पाया, वह और कोई नहीं कबीर साहेब जी ही हैं।

समुद्र पार करने के पश्चात 18 दिन तक युद्ध हुआ। रावण इतना मायावी था कि उसे मारना कोई आसान कार्य नहीं था और श्री राम भी हार मानने लगे थे। विभीषण ने जब बताया कि इसकी नाभि में निशाना लगाओ, जहां अमृत है। परन्तु उसको भी श्री राम निशाना नहीं लगा पा रहे थे और अत्यंत दुखी होकर उन्होंने भी अन्य भगवानों को याद किया तो स्वयं परमात्मा ने सूक्ष्म रूप में आकर रावण की नाभि में तीर लगाया।



राम ने रावण के वध के पश्चात पूर्ण परमात्मा को नतमस्तक हो प्रणाम किया। उसके पश्चात सभी को ज्ञात है कि सीता की अग्नि परीक्षा हुई और वह परीक्षा में सफल हुई। तीनों की अयोध्या वापसी हुई और भरत द्वारा राज श्री राम को सौंपा गया।




राम जी का अपने राज्य में भ्रमण करना

श्री राम अपने राज्य की खबर लेने हेतु वेश बदल कर रात्रि में घूमा करते थे और उसी दौरान उन्होंने धोबी का धोबिन को दिया गया व्यंग्य सुना कि मैं राजा राम जैसा नहीं हूं जो गैर पुरूष के यहां सीता के बारह वर्ष रहने के बाद भी उसे घर में रख लूं। धोबी से अपने लिए यह व्यंग्य सुनने के बाद उन्होंने सीता जी को राज्य से बाहर निकाल दिया जबकि सीता जी अपनी पवित्रता अग्नि परीक्षा द्वारा दे चुकी थीं।

जिस समय सीता को निष्कासित किया गया उस समय वह गर्भवती थीं। राम ने अपने मान सम्मान को ऊपर रखा। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि, राम की मर्यादा यही थी कि अग्निपरीक्षा लेने के बाद भी उन्हें अपनी पत्नी की पवित्रता पर‌ विश्वास नहीं था। अयोध्या में सीता के जाने के पश्चात कभी दीवाली नहीं मनाई गई।

लव-कुश के जन्म की कथा

वाल्मीकि जी ने सीता को पुत्री तुल्य माना। लव-कुश का जन्म वाल्मीकि जी के आश्रम में हुआ। लव-कुश ने श्री राम का घोड़ा पकड़ लिया था। उसके पश्चात उनके बीच युद्ध हुआ और लव कुश ने राम के छक्के छुड़ा दिए। युद्ध के अंत मे ज्ञात हुआ कि श्री राम उनके पिता हैं, लव-कुश ने सारी परिस्थितियों से परिचित होने के पश्चात राज्य में जाने से इंकार कर दिया और राम ने सीता से जब राज्य में चलने हेतु फिर से अग्नि परीक्षा देने के लिए कहा तो सीता ने इन्कार कर दिया और दुखी होकर धरती की गोद में समा गई और राम जी‌ ने परिवार विछोह के दुःख के कारण सरयू नदी में जलसमाधि ली।

■ Ramayana Full Story in Hindi: राम का नाम तो अनंतकाल से विद्यमान है। पूर्ण परमात्मा कबीर ही असली राम हैं जो जग पालनकर्ता भी हैं। बहरे हो गए थे हम आज तक राम के आधे अधूरे व्यक्तित्व को सुन सुनकर। अब धरती पर एक बार फिर परम संत आया है जिसने सभी धर्म ग्रंथों में छिपे रहस्य को समझाने का पराक्रम दिखाया। वरना नकली गुरूओं और पंडितों ने देवी-देवताओं को भी परमात्मा तुल्य बता कर मानव समाज का बेड़ा गरक कर दिया था।

राम अजन्मा है ,सर्वव्यापी, अविनाशी, अकालमूर्त है। जब कुछ नहीं था तब भी वह था और जब कुछ नहीं रहेगा तब भी वह रहेगा।
पूर्णब्रह्म जिसे अन्य उपमात्मक नामों से भी जाना जाता है, जैसे सतपुरुष, अकालपुरुष, शब्द स्वरूपी राम, परम अक्षर ब्रह्म/पुरुष आदि। यह पूर्णब्रह्म असंख्य ब्रह्माण्डों का स्वामी है तथा वास्तव में अविनाशी है।

राम राम सब जगत बखाने। आदि राम कोइ बिरला जाने।। ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई। मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई।।
माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।

पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछे से माया उपजाई।।
माया रूप देख अति शोभा। देव निरंजन तन मन लोभा।। कामदेव धर्मराय सत्ताये। देवी को तुरतही धर खाये।।
पेट से देवी करी पुकारा। साहब मेरा करो उबारा।।

टेर सुनी तब हम तहाँ आये। अष्टंगी को बंद छुड़ाये।। सतलोक में कीन्हा दुराचारि, काल निरंजन दिन्हा निकारि।। माया समेत दिया भगाई, सोलह संख कोस दूरी पर आई।। अष्टंगी और काल अब दोई, मंद कर्म से गए बिगोई।।

धर्मराय को हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भगकर लीन्हा।। धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। मायाको रही तब आसा।। तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।। तीन देव विस्त्तार चलाये। इनमें यह जग धोखा खाये।।

उपरोक्त अमृतवाणी में परमेश्वर कबीर साहेब जी अपने निजी सेवक श्री धर्मदास साहेब जी को कह रहे हैं कि धर्मदास यह सर्व संसार तत्वज्ञान के अभाव से विचलित है। किसी को पूर्ण मोक्ष मार्ग तथा पूर्ण सृष्टी रचना का ज्ञान नहीं है। इसलिए मैं आपको मेरे द्वारा रची सृष्टी की कथा सुनाता हूँ।

बुद्धिमान व्यक्ति तो तुरंत समझ जायेंगे। परन्तु जो सर्व प्रमाणों को देखकर भी नहीं मानेंगे तो वे नादान प्राणी काल प्रभाव से प्रभावित हैं, वे भक्ति योग्य नहीं। अब मैं बताता हूँ तीनों भगवानों (ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शिव जी) की उत्पत्ति कैसे हुई? इनकी माता जी तो अष्टंगी (दुर्गा) है तथा पिता ज्योति निरंजन (ब्रह्म, काल) है। पहले ब्रह्म की उत्पत्ति अण्डे से हुई। फिर दुर्गा की उत्पत्ति हुई। दुर्गा के रूप पर आसक्त होकर काल (ब्रह्म) ने गलती (छेड़-छाड़) की, तब दुर्गा (प्रकंति) ने इसके पेट में शरणली।

मैं वहाँ गया जहाँ ज्योति निरंजन काल था। तब भवानी को ब्रह्म के उदर से निकाल कर इक्कीस ब्रह्मण्ड समेत 16 संख कोस की दूरी पर भेज दिया। ज्योति निरंजन (धर्मराय) ने प्रकृति देवी (दुर्गा) के साथ भोग-विलास किया। इन दोनों के संयोग से तीनों गुणों (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) की उत्पत्ति हुई। इन्हीं तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) की ही साधना करके सर्व प्राणी काल जाल में फंसे हैं।

जब तक वास्तविक मंत्र नहीं मिलेगा, पूर्ण मोक्ष कैसे होगा? (सृष्टि रचना विस्तार से पढ़ने के लिए अवश्य पढ़ें पुस्तक ज्ञान गंगा) वर्तमान समय में केवल संत रामपाल जी महाराज ही हैं जो शास्त्रों में वर्णित कबीर साहेब की साधना बताते हैं जिससे मोक्ष प्राप्ति संभव है। तो बिना समय व्यर्थ गवांए संत रामपाल जी महाराज की शरण ग्रहण करें।








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