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पूर्ण परमात्मा कबीर_साहेब जी का नाम द्वापर_युग में क्या था ?

कलयुग में धर्मदास जी कबीर साहेब के प्रिय शिष्यों में से थे। एक बार धर्मदास जी ने कबीर साहेब से उनके द्वापर युग में प्रकट होने की कथा सुनाने के लिए हृदय से निवेदन किया। कबीर परमेश्वर ने धर्मदास जी को बताया कि द्वापर युग में मैं रामनगर नामक नगरी में एक सरोवर में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुआ था। एक निसंतान वाल्मीकि दंपत्ति कालू और गोदावरी मुझे अपने घर ले गए।  एक ऋषि ने मेरा नामकरण किया। दोनों ही भगवान विष्णु के भक्त थे अतः उन्होंने मेरी प्राप्ति का कारण भगवान विष्णु ही समझा। श्री विष्णु की कृपा से प्राप्त होने के आधार पर मेरा नाम करुणामय रखवाया।  मैंने पच्चीस दिन तक कुछ नहीं खाया-पिया। परिणाम स्वरूप मेरे पालक माता-पिता अत्यंत दुखी हुए और उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की बच्चे को मरने से बचाने के लिए। मैंने विष्णुजी को प्रेरित किया। भगवान विष्णु ऋषि रूप में प्रकट हुए। मेरे पालक माता पिता ने ऋषि को मेरी प्राप्ति का वृतांत बताया। मेरे कुछ ना खाने पीने के बारे में बताया और अपनी गहरी चिंता व्यक्त की।  मुझ बालक को पालनें में देखकर ऋषि समझ गए कि मैं कोई साधारण बालक नहीं हूं। मेरी

आज की कथा 16/01/2019

||| एक विद्वान ब्राह्मण को कबीर साहेब जी ने कैसे किया पराजित |||   कबीर साहेब काशी शहर में जुलाहों की बस्ती में दरिद्र अवस्था में रहते थे । उसी शहर में एक महर्षि सर्वानंद रहते थे । उनकी माता श्रीमती शारदा देवी जी भी उनके साथ रहती थीं । शारदा देवी शारीरिक रूप से बहुत बीमार थी । बहुत से वैद्यो को दिखाया । बहुत प्रकार की दवाइयां भी खाई लेकिन कोई लाभ नहीं  हुआ । प्रारब्ध जानकर पापकर्मों को कम करने की दृष्टि से सर्व पूजाएं, तंत्र मंत्र, जादू टोना, धार्मिक क्रियाएं करवा के थक चुकी थी । सभी विद्वान यह कह देते कि पाप कर्म कभी नही कटते, ये सब तो भोगने ही पड़ते है । त्रेतायुग में श्री राम जी द्वारा बाली को मारने का बदला द्वापर में कृष्ण को बाली आत्मा शिकारी बनकर मारने से हुआ । कई लोगों ने शारदा को इस हालत से छुटकारा पाने के लिए कबीर साहेब के यहाँ जाने को कहा । लेकिन ब्राह्मण महिला एक जुलाहे के घर कैसे जाए । एक दिन शारदा देवी जाने को तैयार हुई । सिर पर पल्लू बांधे शारदा ने कबीर जी के चरणों में दंडवत प्रणाम किया, परमेश्वर ने आशीर्वाद भरा हाथ शारदा के सिर  पर रख कर कहा " शारदा! आज एक धान